दीनबंधु श्रीराम

।। श्रीसीतारामाभ्यां नमः ।।

शील सनेह राम रघुवर को साधु मुदित मन गावत हैं ।

नहि जग गाहक दीन को कोई राम जी नेह निभावत हैं ।।१।।

ये मेरे तुम मेरे कहि गहि बाँह गले से लगावत हैं ।

दीन मलीन संतोष सरीखे राम सदा अपनावत हैं ।।२।।

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