तीन काल तिहुँ लोक में, राम सरिस नहिं कोय

रामदास सबके कहा, अपने अपने राम ।

मेरे तो बस एक गति, कोशलपति श्रीराम ।।

दशरथसुत सीतारमण, तुलसिदास के राम ।

रामदास रघुपति चरण, कोटि कोटि प्रणाम ।।

आरतहित असरन सरन, दीनन को नहिं वाम 

रामदास नहिं और जग, राम सरिस यक राम ।।

सरल सबल करुणाअयन, जन मन राखत जोय ।

तीन काल तिहुँ लोक में, राम सरिस नहिं कोय ।।

विनय शील गुनगन धरे, जन हित में प्रवीन ।

रामदास राजिवनयन, हेरि निवाजत दीन ।।

कायर कूर कपूत ते, कौन भरै निज धाम ।

रामदास रघुवीर का, दीनसंग्रही नाम ।।

बानर भालू असुर को, सखा बनावै कौन ।

दीनबंधु रघुपति सरिस, हुआ न है नहिं होन ।।

           रामेण सदृशो देवो न भूतो न भविष्यति । – श्रीआनंद रामायण ।।

।। जय श्रीराम ।।

Author: श्रीराम कृपाकांक्षी दीन संतोष

स्वामी मेरे राम स्वामिनी सीता माता । " लिखने में नहि मेरा जोर । लिखता मैं हूँ लिखाए और ।। मैं तो बिषई बिषय में जोर । कृपा कीन्हीं अपनी ओर" ।। श्रीराम प्रभु कृपा: मानो या न मानो- www.sriramprabhukripa.blogspot.com श्रीराम प्रभु कृपा यूट्यूब चैनेल https://www.youtube.com/channel/UCsC8xkRvxzaTxh0FPW0Fwpg

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