रामदास सबके कहा, अपने अपने राम ।
मेरे तो बस एक गति, कोशलपति श्रीराम ।।
दशरथसुत सीतारमण, तुलसिदास के राम ।
रामदास रघुपति चरण, कोटि कोटि प्रणाम ।।
आरतहित असरन सरन, दीनन को नहिं वाम ।
रामदास नहिं और जग, राम सरिस यक राम ।।
सरल सबल करुणाअयन, जन मन राखत जोय ।
तीन काल तिहुँ लोक में, राम सरिस नहिं कोय ।।
विनय शील गुनगन धरे, जन हित में प्रवीन ।
रामदास राजिवनयन, हेरि निवाजत दीन ।।
कायर कूर कपूत ते, कौन भरै निज धाम ।
रामदास रघुवीर का, दीनसंग्रही नाम ।।
बानर भालू असुर को, सखा बनावै कौन ।
दीनबंधु रघुपति सरिस, हुआ न है नहिं होन ।।
रामेण सदृशो देवो न भूतो न भविष्यति । – श्रीआनंद रामायण ।।
।। जय श्रीराम ।।