संत और सदग्रन्थ कहते हैं कि यदि आराम चाहते हो, तो राम को चाहो । बिना राम के आराम नहीं मिलता । लेकिन हम सभी आराम तो चाहते हैं, परन्तु राम को नहीं चाहते । इसलिए ही वास्तविक आराम नहीं मिलता । बिषयों का सुख स्थायी आराम नहीं देता । बाहरी और आंतरिक सुख में बहुत फर्क होता है । सुसंत बाहर से भले ही कंगाल दिखें पर अंदर से सुखसागर में गोते लगा रहे होते हैं ।
मानव मन के कहने पर ही सब कुछ करता है । यह मन ही है जो किसी को आराम से बैठने नहीं देता । क्योंकि यह हमेशा दौड़ता ही रहता है । कभी विश्राम नहीं करता । और जब तक मन विश्राम नहीं करेगा । रामजी की ओर दौड़ने के लिए इसके पास समय ही नहीं रहेगा । और जब तक रामजी की ओर दौड़ेगा नहीं । वास्तविक आराम नहीं मिलेगा ।
जब तक मन को आराम नहीं मिलेगा । तब तक हमें भी आराम मिलने वाला नहीं है । मन को आराम मन की गति में विराम लगा कर ही दिया जा सकता है । जब किसी के पास काम होता है तो वह विश्राम थोड़े करता है । कहता है दम मारने को समय नहीं है । यह कर लिया और वह करना है । इसके बाद वह करने जाना है । क्योंकि बहुत काम है । इसीतरह जब तक मन में काम है । विश्राम कहाँ ? और बिना विश्राम राम कहाँ ? और बिना राम आराम कहाँ ?
मन के विश्राम से यहाँ मतलब बिषयों की ओर जाने से विराम लगाने से है । लेकिन मन आसानी से मानने वाला तो है नहीं । आखिर तब किया क्या जाय ? इसे समझाना चाहिए । फिर भी न माने तो जोर-जबरदस्ती भी करना चाहिए । इसे प्रलोभन देना चाहिए । बताना चाहिए कि संसार के रस तो बहुत पी चुके थोड़ा राम नाम रस भी पीकर देखो । किसी भी तरह इसे राम जी से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए । जबरदस्ती ही सही राम-राम करना शुरू कर देना चाहिए । रामजी का ध्यान करना चाहिए । राम जी के गुणगणों को इसे बार-बार सुनाना चाहिए । यह सुनना चाहे अथवा नहीं । और क्या तरीका हो सकता है ? रस्सी से तो इसे बाँधा नहीं जा सकता । धीरे-धीरे जब इसे रामजी के गुणगणों और राम नाम से अनुराग होने लगेगा तो लोभ, मोह, काम, क्रोधादि स्वतः रामजी की कृपा से दूर होने लगेंगे । जितना अनुराग बढ़ेगा उतना ही बिराग भी बढ़ेगा ।
सच में संसार में क्षणिक आराम देने वाली तो बहुत चीजें हैं । लेकिन इनसे मन संतुष्ट कहाँ होता है ? मन वास्तविक सुख यानी आराम चाहता है । परन्तु सच्चा सुख इसे मिलता ही नहीं । इसलिए मन रुपी मृग की तृष्णा ज्यों की त्यों बनी रहती है । और यह चक्कर काटता रहता है ।
जब हम श्रम से थकें होते हैं तो हमें विश्राम करने से आराम मिलता है । परन्तु जब फिर से श्रम करने लग जाते हैं । पुनः विश्राम की जरूरत पड़ती है । जब हम भूंखे होते हैं तो हमें भोजन से आराम मिलता है । परन्तु कुछ समय बाद फिर भूँख लग जाती है । इसी तरह मन को स्थायी सुख नहीं मिल पाता । और इसकी तृष्णा बनी ही रहती है । तृष्णा लेकर पैदा हुए, जिए और फिर तृष्णा लेकर ही चले गए । इसी से भटकना पड़ता है । तृष्णा न रहे तो दुख भी न रहे । इससे छुटुकारा केवल रामजी की कृपा से ही मिल सकता है । नहीं तो बिषयों से बिराग आसानी से नहीं होता ।
जब हमारे मन की कोई कामना पूरी होती है तो हमे क्षणिक सुख यानी आराम मिलता है । लेकिन एक ही कामना तो होती नहीं । एक के बाद एक और हर कामना पूरी होने से ही आराम मिल सकता है । नहीं तो मन खिन्न रहेगा ही । कामनाओं का कोई अंत नहीं होता । मन की तृष्णा आसानी से मिटने वाली नहीं है ।
आखिर यह स्थिति क्यों बनी हुई है ? मन की तृष्णा समाप्त क्यों नहीं होती ? सारे भोग मिल जाएँ तो उन्हें भोगकर भी मन पूर्णरूपेण सुखी क्यों नहीं होता ?
क्योंकि मन इन छोटे-मोटे संसारिक सुखों से तृप्त होने वाला नहीं है । तृप्त कब होगा जब यह पूर्ण रूपेण सुखसागर में गोते लगायेगा । और सुखसागर हैं राम जी । अतः बिना राम के काम बनने वाला नहीं है । राम जी सभी सुखों के मूल हैं । बिना उनके हमें वास्तविक सुख यानी आराम नहीं मिल सकता ।
राम जी तो कण-कण में रमते हैं और इसलिए ही राम कहलाते हैं । फिर भी जब तक उन्हें बुलाया न जाय, उनका स्मरण न किया जाय वे नहीं आते । और जब तक मानव मन राम से दूर रहता है अर्थात राम से निकटता स्थापित नहीं करता । उसे सच्चा यानी वास्तविक आराम नहीं मिलता । जब राम के लिए मन में चाह उत्पन्न हो जाती है अर्थात जब मन राम का स्मरण करने लगता है तो राम जी पास आ जाते हैं । और आराम मिल जाता है । सच्चा आराम रामजी के आने से ही मिलता है ।
रामजी आ जाएँ तो आराम और अगर दूर चलें जाएँ तो इसे ही बेराम होना कहते हैं । राम को बुला लिया यानी उनका स्मरण किया या करने लगे तो राम के आने से आराम मिल जाता है । किसी की तबियत खराब हो जाय तो प्रायः लोग कहते हैं कि वे बेराम हैं । मतलब इन्होंने रामजी को दूर कर (बिल्कुल भुला) दिया है और इसलिए इनसे रामजी बहुत दूर चले गए हैं । जब राम जी दूर चले गए तो आराम कैसे होगा ? स्वास्थ्य में सुधार होने पर कहते हैं कि अब आराम है । मतलब रामजी आ गए हैं और इसलिए आराम मिल गया । इसलिए राम जी को पास रखना चाहिए । यानी उन्हें भुलाना नहीं चाहिए जिससे बेराम होने की स्थिति ही न आये ।
मानो या न मानो बेराम होना भी एक बीमारी है । भले ही लोगों व अपनी दृष्टि में हम स्वस्थ व आराम में दिखें । लेकिन वस्तुतः हम बीमार होते हैं । यह एक ऐसी आंतरिक बीमारी है । जिसका इलाज किसी भी ज्ञात आधुनिक चिकित्सा पद्धति में नहीं है । इसका इलाज किसी सद्गुर या सुसंत के द्वारा ही सम्भव हो सकता है । ये आसानी से न मिल सकें तो स्वतः राम-राम करते हुए रामजी का गुणगान पढ़ते व सुनते हुए हम इस बीमारी से बच सकते हैं । आज के समय में अधिकांश लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं । परंतु भ्रम, अहंकार, मान, गुमान और अज्ञान आदि कुपथ्यों के वशीभूत होकर पथ्य को त्यागकर स्वस्थ व आराम में होने के वहम में जिए जा रहे हैं ।
। । जय श्रीराम । ।